Solicitor General Raised The Issue Of Serious Lapse In Security After The Appearance Of Yasin Malik In The Court – यासीन मलिक की न्यायालय में पेशी के बाद सॉलिसिटर जनरल ने उठाया सुरक्षा में गंभीर चूक का मुद्दा



मेहता ने लिखा है, ‘‘मेरा स्पष्ट विचार है कि यह सुरक्षा में गंभीर खामी है. आतंकवादी और अलगाववादी पृष्ठभूमि वाला यासीन मलिक जैसा व्यक्ति जो कि न सिर्फ आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के मामले का दोषी है, बल्कि जिसके पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध हैं, भाग सकता था या उसे जबरन अगवा किया जा सकता है या फिर उसकी हत्या की जा सकती थी.”

उन्होंने कहा कि अगर कोई अप्रिय घटना हो जाती तो उच्चतम न्यायालय की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती. मेहता ने यह रेखांकित किया कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधान 268 के तहत मलिक के संबंध में आदेश पारित किया है जो जेल प्रशासन को सुरक्षा कारणों से दोषी को जेल परिसर से बाहर लाना निषिद्ध करता है.

उन्होंने लिखा है, ‘‘यह ध्यान में रखते हुए कि जब तक सीआरपीसी की धारा 268 के तहत जारी आदेश प्रभावी है, जेल अधिकारियों के पास उसे जेल परिसर से बाहर लाने का अधिकार नहीं है और न हीं उनके पास ऐसा करने की कोई वजह थी.”

मेहता ने लिखा है, ‘‘मैं समझता हूं कि यह मुद्दा इतना गंभीर है कि इसे व्यक्तिगत रूप से फिर से आपके संज्ञान में लाया जाना चाहिए ताकि आपके द्वारा इस संबंध में समुचित कार्रवाई की जा सके.”

न्यायमूर्ति सूर्यकांत तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद की 1989 में हुई अपहरण की घटना पर जम्मू की निचली अदालत द्वारा 20 सितंबर, 2022 को पारित आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, उसी दौरान यासीन मलिक अदालत कक्ष में उपस्थित हुआ.

सीबीआई ने जम्मू की अदालत के फैसले के खिलाफ अपील की है. निचली अदालत ने निर्देश दिया है कि यासीन मलिक को सुनवाई की अगली तारीख पर उसके समक्ष पेश किया जाए और रुबैया सईद अपहरण मामले में उसे अभियोजन पक्ष के गवाहों से जिरह का अवसर भी दिया जा सकता है. अपने पत्र में सॉलिसिटर जनरल मेहता ने घटना की पूरी जानकारी दी है.

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने टेलीफोन के माध्यम से आपको इस तथ्य की सूचना दी थी. लेकिन, उस वक्त तक यासीन मलिक उच्चतम न्यायालय परिसर में बने थाने में पहुंच गया था.” देश के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि न तो अदालत ने सशरीर उपस्थित होने का सम्मन भेजा था और न हीं इस संबंध में उच्चतम न्यायालय से इस संबंध में कोई अनुमति ली गई थी.

उन्होंने लिखा है, ‘‘यह सीआरपीसी की धारा 268 के तहत पारित आदेश का सामना कर रहे दोषी को जेल परिसर से बाहर लाकर पेश करने की न तो उच्चतम न्यायालय की अनुमति है और न हीं इसमें आदेश प्राप्त करने वाले के लिए सशरीर उपस्थिति को अनिवार्य बताया गया है.”

मेहता ने कहा कि जेल प्रशासन को रोजाना ऐसे सैकड़ों आदेश प्राप्त होते होंगे और उन्होंने कभी भी उसे इस रूप में नहीं समझा है कि सीआरपीसी की धारा 368 के तहत आदेश का सामना कर रहे आरोपी या दोषी की सशरीर उपस्थिति अनिवार्य है.

रुबैया सईद का आठ दिसंबर, 1989 को श्रीनगर के लाल देद अस्पताल के पास से अपहरण कर लिया गया था. भाजपा समर्थित वीपी सिंह नीत तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा पांच आतंकवादियों को रिहा किए जाने के बाद रुबैया को आतंकवादियों ने मुक्त कर दिया था.

अब तमिलनाडु में रह रही रुबैया को सीबीआई ने अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में सूचीबद्ध किया है. सीबीआई ने 1990 की शुरुआत में मामले की जांच को अपने हाथों में ले लिया था.

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआई) की विशेष अदालत द्वारा पिछले साल मई में सजा सुनाए जाने के बाद से 56 वर्षीय मलिक तिहाड़ जेल में बंद है. उसे 2017 के आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराने के एनआई के एक मामले में 2019 में गिरफ्तार किया गया था.

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