यह शोध पहले के हुए अध्ययनों को एक्सपेंड करता है जिनमें ह्ययूमन हेल्थ और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद फूड आइटम्स की पहचान की गई थी. जिसमें साबुत अनाज, फल, नॉन-स्टार्ची सब्जियां, अखरोट और अनसैचुरेटेड ऑयल शामिल थे. इसके अलावा एक लिस्ट ऐसी भी थी जो सेहत और स्वास्थय दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं, जैसे अंडे और रेड और प्रोसेस्ड मीट. हाल ही में हुए शोध के अनुसार हेल्दी फूड का सेवन ज्यादा करना कैंसर, हृदय रोग, सांस संबंधी रोग और न्यूरोलॉजिकल जैसी बीमारियां के होने से व्यक्ति के मौत के जोखिम को कम कर सकता है.
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हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के पोषण विभाग में एमडी, पीएचडी कैंडिडेट लिन बुई ने कहा था कि, “हमने एक नई डाइट स्कोर की प्रस्तावना की जो स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर फूड आइटम्स से पड़ने वाले प्रभावों को शामिल करती है.” “नतीजतन जो हमारे इस सिद्धांत को पुष्टि करते हैं कि एक हाई प्लेनेटरी हेल्थ डाइट स्कोर मौत के जोखिम को कम कर सकता है.”
बुई ने इस अध्ययन के नतीजे NUTRITION 2023 में प्रस्तुत किए हैं. बता दें कि ये अमेरिकन सोसायटी फॉर न्यूट्रिशन के प्रमुख वार्षिक सम्मेलन है, जो 22 से 25 जुलाई को बोस्टन में आयोजित किया गया है.
मौजूदा साक्ष्य के अनुसार, प्लांट- बेस्ड फूड आइटम्स के सेवन से सेहत और पर्यावरण दोनों को कम खतरा था. जैसे इन फूड आइटम्स के सेवन से हृदय रोग, कोलोरेक्टल कैंसर, डायबिटीज और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का जोखिम कम था इसके साथ ही पानी के इस्तेमाल, लैंड यूज, पोषक द्रव्य प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसे पर्यावरण पर भी कम असर था.
नई स्टडी के मुताबिक, शोधकर्ताओं का उद्देश्य एक सिंपल टूल को बनाना था जिसका उपयोग पॉलिसीमेकर और पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञों द्वारा हेल्थ को सुधारने और जलवायु संकट का सामना करने के लिए रणनीतियों का विकास करने के लिए किया जा सके.
बुई ने कहा,” एक मिलेनियल होने के नाते, मुझे हमारे पर्यावरण पर मानवीय प्रभाव को कम करने के बारे में हमेशा से चिंता रही है,”. “एक सस्टेंनेबल फूड पैटर्न सिर्फ हेल्दी ही नहीं होना चाहिए बल्कि इसके साथ ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और अन्य पर्यावरणीय मापकों के प्लैनेटरी सीमाओं के अंदर भी होना चाहिए.”
बुई ने चेताते हुए कहा कि PHDI सभी देशों में फ़ूड आइटम का प्रमुख बीमारियों के साथ संबंध को नहीं दर्शाता है. हालांकि किसी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति, धार्मिक प्रतिबंधों या आर्थिक-सामाजिक स्थिति या खाद्य उपलब्धता के कारण अलग-अलग खाद्य पहुंच के साथ रहने वाले लोगों को डाइट पैटर्न का पालन करने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है. ये रिसर्च ऐसी दिक़्क़तों का पता लगाने और उनसे निपटने में मदद कर सकती है.
बुई ने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि रिसर्चर इसे विशिष्ट खाद्य संस्कृतियों के अनुरूप अनुकूलित कर सकेंगे और बता सकेंगे कि इसका स्रोत गंभीर बीमारी और पर्यावरणीय प्रभावों जैसे कार्बन फुटप्रिंट, वॉटर फुटप्रिंट, और अन्य लोगों के जमीन के उपयोग से किस प्रकार संबंधित है.”
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